SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ सीमंधरस्वामी मोरा रे, हुं तो ध्यान धरूं तोरा रे, राणी रुक्ष्मणीना भरतार रे, मन वंछिते फल दातार रे. १ वीश विहरमान जिन नामें रे, वीशने करुं प्रणाम रे, जेनु दर्शन आनंदकारी रे, तेने पाय नमे नरनारी रे. २ गणधरने त्रिपदी दीधी रे, सिद्धांतनी रचना कीधी रे, एनो अर्थ अनुपम लहिये रे, सुगुरुने वचने रहिये रे, ३ देवी पंचांगुली सानिध्यकारी रे, तेणे पाय नमे नरनारी रे; ए तो थोय रची ते सारी रे एवा कनक सो भागी जयकारी रे, ४ (४) (राग : चोपाई छद) सीमन्धरजिन ध्याइई, जिम दुरित सवि मिटाइई; अष्टकर्म ते दूर जाइ ई, जिम शिवसुख पदवी पाइई. १ सीमन्धर ध्यान धरे, जिम अडसिद्धि नवनिधि करे; संसार फेरीमा नवि फरे, बली अविचल पदवी तिम वरे. २ सीमन्धर जिन सोहे छे. बेठा भविजनने पहिबोहे छे; नर नारी द जे मोहे छे, आनंदित थई प्रभु जोहे छे. ३ पंचांगुली देवी जयं करूं, वली इति उपद्रव ते संहरु; जिन शासनमां शोभा करु, कहे पद्म ऋद्धि वृद्धि करु. ४ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy