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(१४)
श्री सीमन्धर जिनवरा, विचरे जंबूद्वीपे; पुक्खवइविजये नगर, पुंडरीगिणी दीपे. १
सुत श्रेयांस राजा तणो; सोवन कंचन काय; आयु जास सोहाय.
पूरव चोराशि लाखनु, पांचशे धनुष्य शरीर छे, वृषभ लंछन पाय; रुक्मणी राणी नाहलो, सत्यकी जेहनी माय. दश लाख केवळी जेहने, सो होडी मुनिस्वाभी; साघवी सो कोडी कही, श्रावक संख्या न पामी. ४ प्रतिहार ज आठ छे, वाणी गुण पांत्रीश; पूर्वविदेहे जाणीये, नमतां नहीये जगीश
पोते;
ईह भरते प्रभु कुंथजी, सिद्धिपुर अरजिन जन्म हुओ नहि, ए अंतर सोहंते ६ सीमन्धर जिन उपना, सुरपति सुव्रत नमि जिन अंतरे, दीक्षा उदय पेढाल भावि प्रभु, तस अंतर कद्देवाय; सीमन्धर जिन पामशे, अविनाशी पुर ठाय. ८ आ भरते पण कोई जीव, सुलभ बोधि जेह;
जाप जपे तुज नामना, लाख संख्याए तेह. ९ भवस्थिति निर्णय त हुए अथवा ध्यान पसाये; उपजी विदेह केवळ लहे, नवमे वरस उत्साहे. १० शासनसूरी पंचांगुली सर्वि सानिध्य सारे, सीमन्धर जिन सेवना, दुःख दोहग वारे. ११ प्रह उठीने नित्य नमु आणी मन आनंद; लक्ष्मीसूरि प्रभु नामथी, प्रगटे परमानंद १२
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महोच्छव कीधो; कल्याणक सीधो
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