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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३९ जिण वरूलंछण एह, वन्नि सुगुण मणि गेह । वसह गयर वरूए, मृग मरकटु घरए ॥१० सूरचंद वण राजु, कुंजरु हिय करु माणु । शंख वसुह विमल निम्मल वर कमल ।।११ कमल सुधाकर सूर धवल रंधर सर । गयवर हिम कारिण, सत्थिवयर रयण ॥१२ फाग-दिववन्ति सुर्तसुधर घरणीस कर्मणि बहिनीय नाहि पियंगुलतां मनुमोहिनि, माहिनि अति सुविचार किं पुरुषा जयसेना, वीर सेना अभिराम, जयावंती या पुक्खवंतीया नंदिसेणा गुणताम ॥१३ विमला विजयावंतीय लीलावंतीय सुगंध, गंधसेना भद्रवंतीय मोहनिमोह प्रबंध । राय तणा मनुमोहई सोहइ श्रीरायसेणं, सूरजकंत सु राजइ गाजइ गुणमतिगेह ।।१४ पउमावह पटराणीय रूपहि रे रंळलाल, रयण माला वरुतणीय मृग नथणीया सुकुमाल । इण परि जग गुरुनामतापतसुमाय, लंछण तसु धरि धरणीय लथुणीया सुहमाय ॥१५ दयवीस जिणवर सव्व मुहकर विहरमाण जिणेसराजसु चरण सेवइ देव दानव जख्क रस सुकिन्नरा । इम भणह निम्मल भत्रि भावइ देवतिलक मुणीसरो ॥१६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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