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श्री वीस विहरमान स्तोत्र प्रणमवि सरसति पय कमल, विहरमाण जिण वीस । सीमंधर जिण वरस धर, युगमंधर जिण राज ॥१ बाहु सुबाहु जिणंद वर, पंचम जिण संजात । सयं पहु जिणवर वय नमिस्यु, रिखमाज न सुविशाल ॥२ अनंत वीर्य तिथ्य करहां, सुरविह मुणिराज । वज्रधर चंद्रानन सकल, चंद्र बाहु भुजंग ॥३ ईसर नेमिप्पहन मुए, वीरसेन मुहमद । देवजस्या जग गुरु नमह, जिणवर जिन वीरिज्ज ॥४ भाषा तासु पिता श्रेयांस वरमाणउ, सुसढ सुग्रीव निसढ तिह जाणउं देवसेन भूपालोमित्र प्रभु पहु करतिराउ मेघराज महीपलि।
विक्खाऊ विजयनाम नर पालो ॥५ श्री श्री नागपदम रय सारो वालमीकि देवाणंद अपारो । महाबल गलसेन राय, वीर राज भूमि पाल मनोहर । देवराज सर्व भूति नरसेर राजपाल नर राय ॥६ विहरमाण जिण वीसइताय, हिववन्ति सुहरराई । जिण मार्याति सुतणा, ए नाम सत्य कि देवि सुतारा विजया। भूय नंदा देव सेना माय, सुमंगला अति अभिराम ॥७ वीर सेण दिण दिण जयवंती, मंगलावती महियलि गुणवंती ! दीवई विजयावंती भद्दा सरसति पउमा राणी । रेणु महिमा महीपलि, जागी यशोन्वलाउदवंती ॥८ अथ अढईयउ, मेना महीपलि सार भानमती सुविचार, उमादेवि जणणीए
गंगकनी निक मनीए ॥९
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