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श्री जिनमंदिर स्तोत्र अमर नरराज मुनिराज कृत वंदनं, विकट भवताप संताप भर चंदनं । त्रिभुवनानंदन सार गुण सागर, भजत जिन नायकं स्वामि सीमंधरा ॥१ प्रणत जन मंडली काम हरि चंदन, सकल संशय हर सत्यकी नंदनं
चारुचंद्रानन मायत ममता भर मी २ विपुल कल्याण कमलालिखि मंडलं भावन मंदगिनांज नित सुखमंडल। सकल सुख करण समजलछाजल सिंधुर भ०॥३ दलित दुरितागम सकल भूमंडल दुःख हरणं हसित कमलदललोचनं सिद्ध ललना ललित संग विलता वर भ०॥४ विमल केवल तरुणे दलित वितमोभर,
साम्य कमला विजित रम्य रजनीकर । ललित गति विमल मति ललित गुण बंधुर म० ॥५ मदन मदमत्त मातंग मृग नायक, वरत रातं शिव शर्म भर रायकं ।
भवितरित हरण वर चरणनत किन्नर भ० ॥६ मंगलाराम सुरभि सुयश सोज्ज्वलं, सीर निधि नीर दंडी सदशाभंल
द्यौत कलधौतकल कंदला संवर भ० ॥६. भविकजन किरण बौल्लासिरजनी धवं, देवपति भुवनपति भावविहितो
निवडतर कर्म भरत सगतरु कुंजर भ० ॥८ वितत संततिलता मंद जल वाहनं, प्रमद मद मोहगज कुभ पंचाननं
विशद करुणा फल संपदा मंदिर भ० ॥९. सार सुरभित नय लांछनालंकृतं मोक्षम करंद सुविलासधुपाकृति
प्रमेदि नवन क्षिपति मौलि धू चामर भ०॥१०. दास दुवीर भावारित रूपारणं मद्रदारिद्रय दुर्भाग्य भर वारणं
प्रचुर पुंडरीकिणी कामिनी शेषरं भ० ॥११ प्रचुर चिंता हरण चार चिंतामणि प्रणत लोकेषु निजवंश वासरमणिं
हरि धीर प्रिया जितमलय मंदिर म० ॥१२ इति विजयमान जिनराज एषो द्रुत स्वामि सीमंधर परण हरखोत्युतः श्री लब्धि कल्लोल गणि चरणकमलालिना गंगदासेन जिन भलि
भरमालिना ॥१३:
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