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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२७ श्री वीमागाय नं ३ पूरव देशई साण कुंण, पउ चलवइ वजीया । नयरी पंडर गुण हदति, श्रीमंधर सूणीया ।। चउरासी लख पूरव आवि, सउ वमइ काया । उंच पण उंचइ धनक पांच, सेवइ श्रीराया ।। जयवंता जग वीचरताए केवल दीपक देव । श्री श्रीमंधर स्वामीया, दीज्यउ तम्ह पाय सेव ॥१॥ वीस पुरव कुअरवोस, भगवीय जिणेसर । चउसढ पूख राज रोध, पाली अलवेसर । मनसो वृत जिह श्री वहरमांन महीपहाइ सिख्या। उमाहइ ओलग करउंएि सुणज्यो बीआचंद । वंदण म्हारी चीनमऊ, श्रीमंधर जय चंद ॥२॥ आठ क्रम नइ च्यारइ कषा, अढारइ दोसा । हेलई ठांडी लहयउ न्याय, चोगीसइ अंतसा ॥ समोसरण जणवर नंदइ, उवेखइ धर्म । भवीयण नउं सुणउ हेवई सवि क्रम ॥३ भरह खेत्रनी संग सवीए वांदुतम्ह असीस । रीखभणइ धर्म लाभहाउ, पुरउ संघ जमीस । पगे पया माणसे लोई, संवांयेत वाय वंदामइ । १६५८ वरसे श्रावण सुद १० वार आदीत । इंगणोद लखत सीमा जगा जईवंत ॥४ (पत्र १, भा. ३ प्रति स. १०८१२ श्री अभयजैन ग्रंथालय) For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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