SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ परबतनिबधको वलि आमो । जोयणबलिविसतार । सोलसहस सतआवयालीस । दोयकलामनुहार मा०वि० ॥११॥ खेतरबे वलि जुगत्यां केरो । देवकुरु इणनाम । ते विण जोयण बहुविस्तारे । पोलोबे सुणो स्वाम मा०वि० ॥१२॥ सीतानामे नदीवमेरी । सब नदीयां सोरदार । पांच लाख बलि बीजी नदीयां । अने बतोस हजार मा०वि०॥ १३॥ लाख जोजनको मेरु परवत । नाम सुदर सणसार । गजदंता बलि च्यार बीचमे । आउ केम कृपाल मा०वि० ॥१४॥ वनगिरीने परवत बहुला । नदीयां ओघटघाट । किण विधि आवु सुगुणा साहिब ।मारग विषमी वाट मा०वि०॥१५॥ कंचन गिरि बखारा परवत, गजदंता गिरिराय ! भद्रसालबन मोरग विचमे । लागे के मलपाय मा०वि० ॥१६॥ क्यां मुज देश वे भारतखेतर । क्यां पुखलावती जिनराज । ओमेलो किम ठोसी साहिब । तारणतरण जिहाज मा०वि०॥१७॥ निस दिन मारे तुंही आलंबन । वासीयो हृदय मोजार । भवमुख भंजन तुंही निरंजण । करूणा कला भंकार मा०वि०॥१८॥ मन वंबित सुख संपत्ति दाता, प्रभु शाहेब को खास । मुजने सेवक साचो जाणी, पुरोमननी आस माप दीत मा०वि०॥१९॥ खरतर हरख गुरु सुप साये । रूपचंद गुणगाय । अगरचंदको श्री जिनवरजी । तारो दीन दयालाय मा०वि।।२०॥ संवत् अढार से इकवीसे । पोस क्दी शुभ मास । बीज मइ बुधवार अनोपम, जिनपद वंदन मास मा०वि०॥२१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy