SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ तुष्णानुं दुःख होत नहि मुजने, होत संतोष ध्यान रे, तो हुं ध्यान धरत प्रभु ताहरु थिर करी राखत मन रे. सी० ४ निवड परिणामे गोठडी बांधी, ते छूटु किम स्वामि ! रे, ते हुं नर तुजमां के प्रभुजी, आवो अमारी कने रे. सी० ५ ढाळ ५ सीमन्धर जिन एक कहे, पूछे तिहांना लोक रे, भरतक्षेत्रनी वारता, सांभळे सुरनर थोक रे. १ त्रिजो आरो बेठा पछी, जाशे केटलो काळ रे. पद्मनाभजी होशे, ज्ञानी झाकझमाळ रे. २ छठे आरे जे होशे; ते प्राणिना बहु पाप रे. शाता नहि रे एक घडो, रविनी झाझरो ताप रे. ३ ओछु आयु माणस तणुं, मोटु देवनु आय रे. सुख भोगता स्वर्गनां सागर पल्योपम जाय रे. ४ सरागिने एम कहे, तुम तारो भगवंत रे, आपथी आप तरे इम सुणजो सहु संत रे. ५ टाळ ६ एह सूत्रमा जीव ते पामे सांभळी रे म कर हवे जीव विखवाद जे रे ते पुण्य पूरव कीयां नहि रे, तो किहांथी पहेांचे आस, जिनजी किम मळे रे. १ कहे भोळा सुख ले रे, तु सरागी प्रभु वैरागीमां पडो रे; किम आवे प्रभु आंहि जिनजी० २ चोळ मजीठ सरिखो जिनजी साहिबो रे, तुगळीनो रंग; कट काच तणो म्ळ तुजमां नहि रे, प्रभु नगीनो नंग. जि० ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy