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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूलो भमे रे वाडोलीआ; जिहां केवळी नांही रे; विरहीने रयणी जासी रे; तीसी मुज घडी जाय रे. है ० ३ वात मुखे नवनवी सांभळी, पण निरती नवि थाय रे जे जे दुर्भागीया जीवडा, ते तो अवतरीया आंही रे, है० ४ १९७ धन्य महाविदेहना मानवी, जिहां जिनजी आरोग्य रे, नाण दर्शन चरण आदरे, संयम लिये गुरुयोग रे, है० ५ ढाळ ३ सीमन्धरस्वामि ! तुं गुरु ने तु देव, तुम विणु अवर न ओळगुं रे, न करु अवरनी सेव रे, अहं या कने आवजोवळी, चतुर्विध संघ रे साथ लावजो अहि० १ ते संघ केणु किरिया करे ? किणी परे ध्यावे ध्यान, व्रत पच्चक्खाण केम आदरे ? किणी परे देवे दान रे अहिं० २ इहां उचित कीरति घणी रे, अनुकंपा लवलेश, अभय सुपात्र अल्प हुवा रे; निश्चय सरसव जेटलो रे, अभ्यंतर विरला हुवा रे, एवा भरतनो देश रे. अहिं० ३ चाल्यो व्यवहार, बहु झाझो बाह्य ढाळ ४ सीमन्धर ! तु माहरो साहिव, हुं सेवक तुज दास रे, भमी भमी भव करी थाकियो, हवे आव्यो शिवराज रे. सी० १ आचार रे. अहिं० ४ For Private And Personal Use Only इण वाटे वटेमारगु नावे, नावे कासीद कोई रे कागळ कुण साधे पहोंचाडु, हुं मुंझयो तुम मोहे रे. सी० २ चार कषाय घटमां रह्या व्यापी, रातो इन्द्रिय रसे रे, -मद कोह पण क्यारे व्यापे, मन नावे मुज वसे रे. सी० ३
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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