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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ मुज हयडुं शंसय भयु, कुण आगळ कहुं वात, जेहशु मांडी गोठडी, ते मुज न मळे धात. ३ जाणो आवु तुम कने, विषम वाट पंथ दूर, डुंगरने दरिया घणा, विचे वहे नदी पूर. ४ ते माटे इंहां कने रही, जे जे करु विलाप. ते तुमे प्रभुजी सांभळो अवगुण करज्यो माफ. ५ ढाळ-(कपूर होय अति ऊजळो रे.) भरतक्षेत्रना मानवी रे ज्ञानी विण मुंजाय; तिण कारण तुमने कहु रे प्रभुजी मनमां चाहे रे स्वामि ! आवो ईणे क्षेत्र. जो तुम दरिसण देखियेरे, तो निर्मळ कीजे मोरा नेत्र रे स्वामि ! आवो ईणे क्षेत्र. १ गाडरियो परिवार मल्यो रे, घणुं करे ते खास, परीक्षावंत थोडा हुवे रे, शिरधारू विसवास रे ! स्वामि ! २ धरमीनी हांसी करे रे, पक्ष विहूणो सिदाय, लोभ घणी जग व्यापियो, तेणे साचो नवि थाय रे स्वामि ! ३ समाचारी जुई जुई रे सहु कहे माहरो धर्म; खोटो खरो किम जाणिये रे; ते कुण भांजे भरम रे स्वामि ! ४ (ढाळ २) वीरप्रभु ज्यारे विचरता, त्यारे वरतती शांति रे; जे जन आवीने पूछतां, तेहनी भांजती भ्रांति रे. है है झानिनो विरह पडयो. है० १ ते तो दहे मुज दुःख रे, स्वामिसीमन्धरा तुज विना. ते तो कुण करे सुख रे, है० २ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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