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ढाळ ७
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सीमन्धर सरिखो भोमियो रे, श्रीभगवंततुं, तो साखी तोल; सरीखां सरीखे, विण केम आजे गोठडी रे, तु हृदय विचारी बोल ४ करम साथ लपटाणो तु जिहां लगे रे, तिहां लगे तुजने कास; समतानो गुण ज्यारे तुजमां आवशे रे, तिहां रे जइश प्रभुनी पास जिनजी० ५
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सीमन्धरस्वामितणी गुण माळा जे नर भावे भजशे रे; तस शिर वैरी कोई नहीं व्यापे, कर्मशत्रुने हणशे रे. हमचडी०
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हमचडी मारी हेल रे, सीमन्धर मोहन वेल रे; सत्यकी राणीनो नंदन निरखी, सुख संपतनी गेल रे. हमचडी० सीमन्धरस्वामि शिवपुर गामी, कविता कहे शिरनाभी; वंदणा माहरी हृदयमां धारी, धर्मलाभ द्यो स्वामि रे. हमचडी० श्रीविजयदेव पटोधर रे;
श्री तपगच्छनो नायक सुंदर
कीर्ति जेहनी जगमां गाजी, बोले नर ने नारी रे. हमचडी० श्रीगुरु वयणसुणी बुद्धि सारु, सीमन्धरजिन गायो रे. संतोषी कहे देव गुरु धर्म, पूरव पुण्ये पायो रे. हमचडी०