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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९८८ www.kobatirth.org ढाळ छुट्टी — राग धन्यासरी ६ अधिकुं ओछु प्रभुजी जे लिखतां लख्यु रे, प्रबल प्रीति विशेष; चित्तमां रे चित्तमां प्रभु म आंणस्यो अबोलडा रे. ५६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसो पुनिम पूरण पेखी चंद्रमाहे, समरी लिखिउ रे लिखिउ माजिझम राते श्री तपगच्छ गगनगण भास दिनमणि रे श्री विजयदेवसूरि; सोहे रे, सोहे चढते पखि जिम चंद्रमारे. ५८ तस पटधारी श्री विजयसिंहसूरीश्वर रे, युवराजा मुनिराज रे. राजे रे राजे रे श्री सीमंधर विनति रे. ५९ साधुपुरंदर बुध श्री लब्धिचंद्र शोभता रे, जग मांहि जसविख्यात तेहनो रे तेहनो शिष्य गुणचंद्र हरखे भणे रे. ६० 9 श्री जिन लेख, खातिस्युं रे. कळश इति संप्रति सोहे भविक मोहे विहरमान जिनेसरो, संकट चूरे आसपूरे, नाथ सिरि सीमंधरो, महाव्रत व्योम मुनि सोम मेळी जाणि एह संवच्छरो. जीर्णगढ चोमासे मनह उल्लासे, थूण्या में परमेश्वरो. ६१ इति श्री सीमंधर लेख संपूर्ण शुभं भवतु. कल्याणमस्तु For Private And Personal Use Only ५७ ढाळ १ परम योगीसरा जाणि जझायं तिज, परम पुण्येण मणसाविपायंति मुणविइयदेहगेह मिलायंति जं, चारु निय चित्त पुमेस ठाय तिजं सयल मुरनायगा सदसिगायंतिजं जोडिकरिजुयलवन्नति दायंतिज', मुरख परमग्ग सुहवगा जायंतिज, मिच्छादि दिग पावणे दूरि हायंतिज.
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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