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१८९ असुर सुर सामिणो काम मुच्चंतिज', भत्तिदधूण सुहणसि सच्चतिजं भवीअणा महीअणो कहवीमुच्चंतिज, मोहलो हाइणोणेवमुचतिज. जोयम चारु मायदत रुचीरज, लध्ध संसार पाणीय नही तीरजं. दलीयभव्वाण पुहकम्म जंजीरज', कहीय वस्त गुहज गंमीरजं. पसमीय पाव सुयणांणसारीरज, जिणवर सुगुण सेयास नववारज. थुणह तु सामी सीमंधर नीरज, तस्सणा हस्सयण मत्र पय नीरज
ढाळ २
(अमीज समाणी वाणी वरसती ए ढाल) मोह महीपति वसि करी आपणई, पाम्या पंचम नांण, त्रसनई थावर प्राणी पलावळ, वरतावी जगि आण. सुगुण तुम्हारा हो जिनजी मई सुण्या, उपनो अधिक आणंद, अहनिसि हइजो नयन चकोर तां, चाहिण तुझ मुख चंद. धन जयवंतजी विजय पुष्कलावती, धन धन पूरव विदेह, धन सा नयरीजी वर पुंडरीगिणी, धन श्रेयांस नृपगेहो. धन धन जन निजी सताकी कूखडी जेणि जायो जग अवतंस जग जण बंधूर पहु सीमंधरो, मुनि मन मानस-हंस. राज रमा रुधि रस संसारनी, हय गय वरह भंडार, क्षिण एक मांहि क्षण भंगर लही, कीधो सवि परिहार करम निकाचीत कंद निकंदीआ, ग्रही तप कठिन ठाकुर, पंथ मुगतिनु पर पुष्कल कर्यो, कारण विश्वोपगार. निरमल केवलज्ञान अलंकर्या, परिहरी दोस अठार, ... सपर्व सुरासुर तव आवी करई, केवल उत्सव सार.
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