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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाळ पांचमी राग मारुणी तुं जिन पूज्यो के नवि में मन भावस्यु रे, के लोपी तुज आंण, के कहेना रे बाल विछोह्यां मातथी रे, ४५ १८७ में हनी मूकी थपणि, ओलविरे के में कूडा कलंक; दीघा रे दीघा रे माहोमांहि वढतां थकां रे ४६ पोपे जिनराय, पुण्य, कर्यो रे. ४९. के में बालादिक हेले त्रासव्या रे, तिण मुजने रे मुजने वियोग थयो, प्रभु तुम्ह तणो रे. ४७ दुपम काले मानव भव में लह्यो रे, पणि तुज दरिसर दूर, ते माटे रे ते माटे भवनो पार किम पामीई रे. ४८. साधुधर्म श्रावक धरम न को कर्यो रे, नहीं मुज दान ने जिनवर रे जिनवर भाषित धर्म न को पंच समिति त्रिण गुपसि नवि सुधि धरी रे, नहीं बलि महाव्रत शुद्धि, पोते रे पोते केणी पर भवि हुसी रे. ५० तिण पगि लागी, वलि बलि विनवु रे, श्री सीमंधर राय, राखो रे राखो सेवक शरणे आपणे रे. कृपा करीने विनति, भोरी मानजो रे. अमने छे विश्वास, तरशुं तरशुं केवल नामे तुम्हतणे रे. ५२. दूहा ६ आज नहीं काले मिले, काले नहीं तो आज, ईण परी दहाडा निगमुं, आस्याहि जिन राज. आस्या अण संसारमां विरहो चित्र आधार, आस्या विलुद्धा मानवी जीवें वरस हजार. अंतर गति आलोचतां जहि प्रभु विरह लगार, हृदयकमलमां तु वसे, पणि संदेसे विवहार. For Private And Personal Use Only ५१. ५३ ५४ ५५.
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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