SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८१ क्रोध दावानल प्रबळथीजी, उगे न समता वेल: मान महीधर आगळेजी, न चले गुण नदी रेल. कृपा० २२ माया - सापण पापिणीजी, मन बिल मूके रे नाह; कोमळ गुणने ते डसेजो, लोभ विलास अथाह. कृपा० २३ वस्त्र पात्र जन पुस्तकेजी, तृष्णा कीधी अनंत; अंत न आवे लोभनोजी, कहुं के तो वृतांत ! कृपा० २४ धर्मतणे दंभे कर्याजी, पूर्या अर्थ ने काम; तेही ऋण भव हारीयाजी, बोध होवे वळी वाम. कृपा० २५ कल्प्या कल्प्य विचारणाजी, राखी कांई न शंक; अनेषणीय परिभोगथीजी, रुल्यो चउगति जिम रंक. कृपा० २६ हवे तुम ध्यान सनाथताजी, आडो वाळ्यो रे आंक; करुणा करीने निरखीयेजी, मत गणजो मुज वांक कृपा० २७ मुजने कहेतां न आवडेजी, नाणे जे तुज दीठ; हुं अपराधी ताहरोजी, खमजो अविनय धीठ कृपा = २८ तुमे जिम जाणो तिम करोजी, हुं नहि जाणुं रे कांई; द्रव्यभाव सवि रोगनाजी, जाणो सर्व उपाय. कृपा २९ हुं एक जाणु ताहरुजी, नाम मात्र निरधार; आलम्बन में ते कर्यु जो, तेहथी लहु भवपार कृपा० ३० तात " सत्यकी" नंदनोजी, "ऋक्ष्मणि” राणीनो कत, तात 'श्रेयांस' नरेसरुजी, विचरंता भगवंत कृपा० ३१ चित्त मांहे अवधारशोजी; तोये केतीक वात; For Private And Personal Use Only लही सहाय तुम्हारडीजो, प्रगटे गुण अवदात. कृपा० ३२ परम पुरुष ! परमेश्वरूजी ! प्राणाधार ! पवित्र; पुरुषोत्तम ! हितकारोजी, त्रिभुवन-जनना मित्र ! कृपा० ३३ "ज्ञानविमळ" गुणथी लहोजी, मारा मननी रे हुंस, पूरी शिशु सुखियो करोजी, मुज मानस सरहंस. कृपा० ३४ *
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy