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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डभोई ग्रामे लिखितंग कांति सौभाग्येन स्ववाचनार्थ शुभं भवतु श्रीरस्तुः श्रीः गुणचंद्रकृत सोमन्धर लेख १ देवाः समर्चन्ति पदारविन्द, यस्य प्रभाव सुमनोहरं च । सीमन्धर प्राप्य जिन प्रसन्न', ब्रवीमि किंचित् स्वधियानुसारम् || दूहा स्वस्तिश्री पुखलवती, नामे विजय प्रधान, पुंडरिगिणी नयरी प्रगट, भूतल तिलक समान २ श्रीलोमन्धर विचरे तिहां, श्री विहरमान अरिहंत; सकल जंतु संदेहडा, भाजे श्री भगवंत. ३ चरणां नारे, भगवान रे. लवलेश रे. डाळ पहेली श्री सीमन्धर साहिब, विहरमान दक्षिण भरतथी विनवे, भविका तुज सुगुण संदेशो सांभळा, हूं लेख विनतडी किंकर तणी, धरजो चित्तप्रदेशे रे. सुगु० ४ जिनजी तुम्हारा ध्यानजी, अमने अधिक कल्याण रे, पणि तुज विरहे पापीओ, पीडई घणुं सुजाण रे. दुषमकाले तुं लह्यो, श्री सीमन्धर तात रे; तुजविण हुं केहने कहुं, म्हारा मननी वात रे. सुगु० ६ साहिब सेवक उपरे, आंणी प्रीत विशेष रे, चित कारण बे बोलडा, लिखजे वळते लेख रे सुगु० सेवक चित्त संभारिने, ओक आंगलनो लिखजो लेश रे; ते पाडन राखस्युं तुम्हतणो, दस गुणो वालसुं तेहरे. सुगु० ८ राग जयंत सिरि For Private And Personal Use Only सुगु० ५ ७
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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