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निश्चय पर निशंकी जी, नावे शुक
परिभव परपरिवादना जी, परे परे भाखु रे आपः निज उत्कर्ष करूं घणो जी, एहि ज मुज संतोप, कृपा० १० निश्चय पंथ न जाणीयो बी, व्यवहरियो व्यवहार; मदन मस्ते निशंकथी जी, थाप्यो असदाचार. कृपा० ११ समय संधयणादि दोषथी जी, नावे शुकल ध्यान; सुहणे पण नवि आवियु जी, निराशंस धर्म ध्यान. कृपा० १२ आर्त-रौद्र बेहु अहोनिशेजी, सेवाकार खवास; मिथ्या राजो जिहां होये जी, तृष्णा लोभ विलास. कृपा० १३ जिन मत वितथ प्ररूपणा जी, कीधी स्वारथ बुद्धः जाड्यपणाना जोरथी जी, न रही कांई शुद्ध कृपा० १११ हिंसा अलीक अदत्तशु जो, सेव्यां त्रिविध कुशील; ममता परिग्रह मेळवीजी, कीधी भवनी लील. कृपा० १५. अक्रिय साधेजी जे क्रियाजी, ते नावे तिल मात्र; मद अज्ञान टळे जेहथीजी, ते नहि नाणनी यात. कृपा० १६ दर्शन पण फरस्यां घणांजी, उदर भरवाने काम; पण तुम तत्त्व प्रतीतशुजी, न धरू दर्शन नाम. कृपा० १७ सुविहित-गुरुबुद्ध लोकनेजी, हु वंदावु रे आप; आचरणा नहि तेहवीजी, ए मोटो संताप. कृपा० १८ मिथ्यादेव प्रशंसीयाजी, कीधी तेहनी सेव; अहाछंदना वयणनीजी, न टळी मुजने टेव, कृपा० १९ कार चित्ते चूना परेजी, धर्मकथा में कीध; आप वंची पर वंचियाजी, एके काज न सिद्ध. कृपा० २०. रातो रमणी देखीनेजी, जिम अणनाथ्यो रे सांढ; भांड-भवैयानी परेजी, धर्म देखाडु मांड. कृपा० २१
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