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मेरुगिरि लेखिणी आभ कागळ करूं,
क्षीर सागर तणां दूध खडीया भरूं; तुम्ह मिलवा तणा स्वामि ! संदेशडा,
इन्द्र पण लिखिय न शके अछे एवडा. १२ आपणे रंग भरी वात मुख जेटली,
उपजे स्वामि न कहाय मुख तेटली; सुणो 'सीमन्धर' राज राजेसरा,
लाड ने कोड प्रभु पूर सवि माहरा. १३ पुव्व भवि मोह वसि नेह हुवे जेहने,
समरिये अणी संसार नित तेहने; मेहने मोर जिम कमल भमरो रमे,
तेम अरहंत तु चित्त मोरे गमे. १४ खरु अरिहंतनुं ध्यान हियडे वस्युं,
बापडं पाप हिव रहिय पूरशे किस्यु; श्याम जिम गमडवर पंखी आवे वही,
ततखिण सर्पनी जुति न शके रही. १५ पाप मैं कडीज सावज्ज सहु परिहरि,
'स्वामिसीमन्धरा' तुम्ह पय अणसरी; शुद्ध चारित्र कहिये प्रभु पाळ्शु,
दुःख भंडार संसार भय टाळ्शु, १६ तुम्ह हुँ दास हुँ तुम्ह सेवक सहो,
एह वात में अरिहंत आगळ कही; एवडी माहरी भगति जाणी करी,
आपजो बापजी सार केवळ सही. १७
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