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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरुगिरि लेखिणी आभ कागळ करूं, क्षीर सागर तणां दूध खडीया भरूं; तुम्ह मिलवा तणा स्वामि ! संदेशडा, इन्द्र पण लिखिय न शके अछे एवडा. १२ आपणे रंग भरी वात मुख जेटली, उपजे स्वामि न कहाय मुख तेटली; सुणो 'सीमन्धर' राज राजेसरा, लाड ने कोड प्रभु पूर सवि माहरा. १३ पुव्व भवि मोह वसि नेह हुवे जेहने, समरिये अणी संसार नित तेहने; मेहने मोर जिम कमल भमरो रमे, तेम अरहंत तु चित्त मोरे गमे. १४ खरु अरिहंतनुं ध्यान हियडे वस्युं, बापडं पाप हिव रहिय पूरशे किस्यु; श्याम जिम गमडवर पंखी आवे वही, ततखिण सर्पनी जुति न शके रही. १५ पाप मैं कडीज सावज्ज सहु परिहरि, 'स्वामिसीमन्धरा' तुम्ह पय अणसरी; शुद्ध चारित्र कहिये प्रभु पाळ्शु, दुःख भंडार संसार भय टाळ्शु, १६ तुम्ह हुँ दास हुँ तुम्ह सेवक सहो, एह वात में अरिहंत आगळ कही; एवडी माहरी भगति जाणी करी, आपजो बापजी सार केवळ सही. १७ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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