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जाण संयोग आगम वयण पिण सुणु,
धर्म न कराय प्रभु पाप पोते घणुं; एक अरिहंत तु देव बीजो नहीं,
एक आधार जग जाणजो अम्ह सही. ६
धण कणय माय पिय पुत्त परिजन सहु, हस्यो बोल्यो रम्यो रंग रातो बहु; जयो जयो जग गुरु जीव जीवन धरा,
तुम समोड नहि अवर वाल्हेसरा.
जेहने नामे मन वयण तन उल्लसे,
अमिय रस वाणी जाणुं सदा सांभळु,
वारंवार परपदा मांहि आवी मिलुं; चित्त जाणं सदा स्वामि ! ओलगुं,
किम रु ठाम पुंडरोगिणी वेगलं. ८ भोलिडा भगति तुं चित्त हारे किस्ये,
पुण्य संयोग प्रभु दृष्टिगोचर हुये,
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भल भलो एणी संसार सहुए अच्छे,
स्वामिसीमन्धरा ! ते सहु तुम पछे; ध्यान करतां सुपन मांहि आवी मिले,
दूरथी ढूंकडा जिम हियडे वसे. ९
6 ू
साम सोहामणा नाम मन गह गहे,
तेशु नेह जे बात तुम्ह जो कहे । तुम्ह पाय भेटवा अति घणो टळवळु",
देखिये नयण तो चित्त अरति टळे. १०
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पंख जो होय तो सहिय आवी मिलु, ११