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असंभव है ! अतः श्री सीमन्धरस्वामी की आराधना का महत्त्व हम आसानी से समज सकते है, यही कारण है प्रातः प्रतिकमण में हम चंद्र के माध्यम से प्रतिदिन अपनी विनंती श्री सीमन्धरस्वामी के पास पहुचाते हैं ।
परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री कैलाससागरसूरिजी, श्री कल्याणसागर सूरिजी अव श्री पद्यसागरसूरिजी के शिष्य मुनिराज श्री धरणेन्द्रसागरजी का इस वर्ष का चार्तुमास जोधपुर हो रहा है ! बिद्वान होने के साथ साथ आप अपने महान गुरुओं की परंपरा में अच्छे व्याख्यान कर तथा विषयवस्तु को सरल भाषा में समझाने की कला में निपुण हैं । चातुर्मास हेतु आपके जोधपुर प्रवेश के कुछ दिनों पश्चात् ही वीर संवत २५०५ मिती वैशाख कृजीण १४ तदनुसार दिनांक २५ अग्नैल १९७९ बुधवार को बालब्रह्मचारी पूज्य साध्वी श्री संपत श्री देवलोक हुई । विदुषी साध्वी श्रा संपती चालीस वर्ष से निर्मल चारित्र को आराधना करने वाली शांत मूर्ति थी। जिन्होंने स्व और पर के कल्याण में अपने संपूर्ण जीवन को समर्पित किया था । पवित्र गंगा नदी की भांति उनका उपकार अनेक स्थानों पर रहा परंतु जैसे गंगा का उपकार काशी पर विशेष है । साध्वीका जोधपुर पर विशेष उपकार रहा ।
__ आपकी निश्रा में रातानाडा क्षेत्र में भव्य जिनमंदिर एंव उपाश्रय का निर्माण हुआ जिससे उस क्षेत्र के श्रावक श्राविकाओं को धर्म आराधना करने का अंक सुन्दर केन्द्र प्राप्त हुआ। आप ही के सदुपदेश से शहर के मुख्य कपडा बाजार में प्रथम तीर्थ कर आदीश्वर भगवान का मंदिर निर्मित हुआ तथा लखारा की सड़क पर स्थित पुराने उपाश्रय को नवीन रूप प्राप्त हुवा तथा उपर के क्षेत्र में मंदिर का भी निर्माण हुआ ।
पूज्य मुनिराज श्री धरणेन्द्रसागरजी महाराजसाहेब द्वारा श्री सीमन्धर स्वामी पर संग्रहित उक्त पुस्तिका को पूज्य साध्वीजी का
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