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दो शब्द
मुनि प्रवर श्री धरणेन्द्र सागरजी महाराज साहब द्वारा संग्रहित "उड जा रे पंछी महाविदेह में" पुस्तक के संबंध में दो शब्द लिखने का निर्देश प्राप्त कर स्वयं को सौभाग्यशाली समझता हूं । मुनि प्रवर ने हिन्दी भाषा में निरंतर प्रातः स्मरणीय श्री सीमन्धरस्वामी की आराधना पर उक्त पुस्तक तैयार कर अक महत्ती आवश्यकता की प्राप्ति की है ।
श्री सीमन्धरस्वामी परमात्मा का जन्म महाविदेहक्षेत्र के पूर्व विदेह प्रदेश में पुष्कलावृत विजय के पुंडरिकगिरि नगर में वर्तमान चौवीसी में सत्रहतें तीर्थंकर श्री कुंक नाथ और अदारहतें श्री अरनाथ के मध्यकाल में हुआ और बीसवे तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत और इक्कीसवे श्री नमीनाथ के मध्यकाळ में दोक्षा हुई । आपके पूज्य पिताश्री मातुश्री व भार्या का क्रमशः श्री श्रेयांसकुमार, सत्यकी, और रुकमणी है !, श्री सीमन्धरस्वामी की शिष्यपरंपरा में चौरासी गणधर, दसलाख केवली, अक सौ करोड साधु, अक सौ करोड साध्वी, और असंख्य श्रावक, श्राविकाओं का विशाल जन-समुदाय हैं ! श्रीसीमन्धरस्वामी की निर्धारित आयु चौरासी लक्ष पूर्व की हैं, अत: उन्हे भावी चौबीसी में तीर्थंकर उदय और पेदाल के काल में मोक्षप्राप्ति हुई ।
आचार्य भगवंत श्री लक्ष्मीसागरसूरिजी का अभिमत है कि श्रद्धालु आत्म द्वारा श्री सीमन्धरस्वामी की विधिपूर्वक आराधना करने पर उनकी मन स्थिति निर्धारित होती है, ऐसी आत्मा की जन्म महाविदेह क्षेत्र में होने की संभावना रहती है, जहां आठ वर्ष को अल्पायु में चरित्रग्रहण कर मोक्ष मार्ग की आराधना की जाती है ! शास्त्रों के अनुसार जाधुनिक पंचम काल में मोक्षप्राप्ति महाविदेह क्षेत्र में जन्म के बिना
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