________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४३ आभिनिवेशिक जोरे जूटुं बोलता, थापे मोहे व्याप्या निज निज पंथ जो, संघ चतुर्विध मांहि भेद घणा पडया. उत्थापे केई अधुना नहि निर्ग्रन्थ जो. श्री सीमंधर० ४ केईक क्रियावादी जड जेवा थया, केईक राखे अध्यात्मिनो डोळ जो; ग्रहे एकान्ते ज्ञान क्रियाना पक्षने, पाखंडे चलवे कोई मोटी पोल जो. श्री सीमंधर. ५ भद्रवाहुत्वामी आदि श्रुत केवळी, परंपराथी आवे जे श्रुतज्ञान जो, परंपरा उत्थापक लोपे तेहने, करीने विरुद्ध भाषण विषनु पान जो, श्री सीमंधर० ६ इत्यादिक जाणो छो जिनजी ज्ञानथी, करजो स्वामी दुःषम काळे सहाय जो; आप भक्ति शक्ति स्फूर्ति मतिनी थतां, तरतम योगे शिव मारग परखाय जो, श्री सीमंधर० ७ सहस्र एकवीश पर्यन्त वीरना शासने, संघ चतुर्विध अविच्छिन्न वर्ताय जो; युगप्रधानो थाशे आत्मार्थी घणा, कारण योगे कार्यसिद्धि सुहाय जो. श्री सीमंधर० ८ वाचक यशोविजयजी वचने चालवु, गुरु परंपरा धर्मक्रिया आचार जो; अनेकान्त मारग श्रद्धा साची ग्रही; बुद्धिसागर आशा शिवसुख सार जो. श्री सीमंधर० ९
For Private And Personal Use Only