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लखु जे जे लेखमां मारा बहालाजी लाख गमे अभिलाष जईने कहेजो मारा वहालाजी; तुमे भेजामा तेह लहो मारा वहालाजी, मुज मन पूरे छे साख, जईने कहेजो मारा वहालाजी. ७ लोकालोक स्वरूपना मारा वहालाजी, जगमां तुमे छो जाग, जइने कहेजो मारा वहालाजी, जाण आगळ शु जणावीए? म्हारा वहालाजी, आखर अमे अजाण जईने कहेजो मारा वहालाजी. ८ वाचक उदयनी विनति मारा वहालाजी, शशहर कहेजो सन्देश, जईने कहेजो भारा वहालाजी मानी लेजो मारी विनति मारा वहालाजी, वसति दूर विदेश, जईने कहेजो मारा वहालाजी. ९
(६१) श्री सीमंधरस्वामि विनति सांभळोः भरतक्षेत्रमा धर्मवृक्ष छेदाय जोः केवळज्ञानी विरहे जिननी वाणीमां संशय पडतां मत मतान्तर थाय जो श्री सीमंधर० १ निन्हव प्रगटथा हठ कदाग्रह जोरथी करी कुयुक्ति थाप्या निज निज पक्ष जो, अल्प बुद्धिथी निर्णय को न करी शके, निरपक्षी वीरला कोई होवे दक्ष जो. श्री सीमंधर० २ केईक मतिमां आवे तेवु मानता, पंचांगीनो करतां केइक लोप जा, दृष्टिरागमां खूच्या केईक बापडा पंच विषयनो व्याप्यो छे महाकोप जो. श्री सीमंधर० ३
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