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(६२) सीमन्धर सीमन्धर स्वामि, एक अरज अवधारो; एह संसार समुद्र मिथ्याजल, तेहथी पार उतारो. श्री० १ निरधनीयो धन संपत्ति जेम, चातक जिम जलधारो; तिम दरिसण जिनराज तणानी; मुज अभिलाष अपारो. श्री० २ क्षेत्रविदेहे आप विराजो, बसणो इहां अमारो; लब्धि गगन चारिणी नहि विद्या, किम होय दर्शन थारो. श्री० ३. प्रह उठी चरण नमें नित, धन तेहनो अवतारो, ते दिन हमारो धन स्वामी, भेटुं चरण तुमारो, श्री० ४ सुर नर किन्नर यक्ष सर्व ही, वंदे चरण तुमारो; श्रवणे वाक्य सुणे स्वामिना, तेहनो होय निस्तारो श्री० ५ जोजन एक विस्तरे वाणी, सहु जीवा सुखकारो; अतिशय चोत्रीश गिरा पैतीशो, मुख दिसे दिस चारो श्री० ६ धनुष पंच शत ऊंचो सुणीये, देह तणो विस्तारो; लख चोराशी पूरव आयु, श्री जिनराज तुमारो. श्री० ७ भवो भव चरण तुमारी सेवा, एह अवज अवधारो, अल्प बुद्धि मारी स्वामि गुण, कब लग कहुं पारो श्री० ८ संवत अढारे वर्ष इक्यासी, श्रावण मास मझारो, कहे शिवलाल भाव शुद्ध वंदो, एह जिन तारणहारो. श्री० ९.
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