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(५२)
(राग-नंद सलुणा मने नंदना रे लो) सीमंधर सुणो विनंती रे लो; कांई आज लगे दिलमा हती रे लो मनभ्रमरो अति लोभीयो रे लो, कोई प्रभु सेवाथी थोभीयो रे ला
॥ १ ॥ श्री तुं त्रिभुवननो मोड छे रे लो, कांई मुख देखण मन कोड छे रे लो दैवे न दीधी पांखडो रे लो, कांई दरिसण चाहे आंखडी रे लो
॥ २ ॥ श्री मन जाणे उडी मर्छ रे लो, कांई साहिब सेवामां भळु रे लो, हेजे हळी तजशु हस्यो रे लो, कांई तरण तारण हइडे वस्यो रे लो
॥ ३ ॥ श्री मीठं दरिसण ताहरु रे लो, काइ चित्तडु चोरायु तिणे माहरु रे लो नेह निवारण जे छे रे लो, कांइ बांय ग्रह्यानो लाज छे रे लो
॥ ४ ॥ श्री रंग लाग्यो प्रभुशु तिसो रे लो, कांइ चोलमजीठनो छे जिसो रे लो विसार्या किम विसरे रे लो, रातदिवस भरी सांभळे रे लो
॥ ५ ॥ श्री नवल सनेही दु.ख कंदना रे लो, कांई जिनजी जगदानंदना रे लो अवगुण त्यजी गुण लेखवा रे लो, कांई सेवक दिल भरी देखवा रे लो
॥ ६ ॥ श्री तुं प्रभु जोवन जोड छ रे लो कांई सेवामां शी खोड छे रे लो कांतिविजय जिनजी मळ्या रे लो; कांइ म्हां माग्या पाशा ढळ्या रे लो
॥ ७ ॥ श्री
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