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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५३) (सिद्धारथना रे नंदन विनवु-से देशी) विनति मारी रे सुणजो साहिबा, सीमंघर जिनराज; त्रिभुवन तारक ! अरज उरे धरो, देजो दरीसण राज. वि. १ आप वस्या जई क्षेत्र विदेहमां, हु रहुं भरत मोझार; ए मेळो किम थाये जगधणी, ए मुज सबल विचार वि० २ वचमां वन द्रह पर्वत अति घणा, वळी नदीओना रे घाट; किण विध भेटुं रे आवो तुम कने, अति विषमीए रे वाट वि० ३ किहां मुज दाहिण भरतक्षेत्र रह्यु, किहां पुक्खलवइ राज; मनमा अळजो रे मळबानो घणो भवजल तरण जहाज. वि० ४ निशदिन अवलंबत मुज ताहरु, तु मुज हृदय मोझार; भवदुःख भंजन तुं ही निरंजनो, करुणा रस भंडार. वि. ५ मनवंछित सुखसंपद पूरजो, चूरजो कर्मनी राश; नित्य नित्य वंदन हुँ भावे करूं, एही ज छे अरदास, वि० ६ तात श्रेयांस नरेसर जगतिलो, सत्यकी राणीनो जात: सीमंधर जिन विचरे महीतळे, त्रण भुवनमां विख्यात वि० ७ भवो भव सेवा रे तुम पदकमलनी, देजो दीन दयाळ; बे कर जोडी रे उदयरतन वंदे नेक नजरथी निहाळ. वि०८ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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