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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ (३३) सुनो सुनो सीमन्धर स्वामि शासन स्वामी रे, ___मोहे लगी मिलनकी आश, अंतरजामी रे सुनो० १ में भरतक्षेत्रमें आय लीयो हे वासो रे, तुम लगी न आयो जाय, पूर्छ किम शांसो रे,...सुनो० २. मोह्या विण वीतराग नीर नयणे वरसे रे, मारु हैयु न मेरे पास, सदा दिल तलसे रे...सुनो० ३ एम तलसे दिन ने रात, मनडु मेरु रे, ___कब देखुं तुम देदार, दरिसण तेरु रे.. सुनो० ४ में रात उघाडी आंख निंद न आवे रे, भगवंत विना भव्यजीव, बहु दुःख पावे रे...सुनो० ५ ऐवा जिनगुण गावे जिनदास, मधुरी वाणी रे, चरणोंकी रज करी जाण, आपनो जाणी रे...सुनो० ६ सेवक स्वामी एकराजी तोसू एहि ज प्रीति; समकित थारी विनतिजी, कहेजो धरी निज प्रीति; कलानिधि ! तुं जाईस तिण ठामी, आंकणी. विहरमान जिणवर जिहांजी, श्री सीमन्धरस्वामी. कला० १ मुज मने अलजो छे घणोजी, देखण प्रभु दीदार; जाणुं मुख आवे नहिजी, प्रसन्न करूं दो च्यार. कला० २ अति अळगी पुंडरीकिणीजा, किण परि आयो जाय; त्रिकरण शुद्ध वंदनाजी, मुजी कहेवाय रे. कला० ३ तुं नाणे जाणे सहिजी, पण नाणे, मनि प्रेम; नाणे लोभाये नहिजी; तो वळी कीजई केम. कला. ४ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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