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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३२) श्री सीमंधर साहिबा, अवर नहि जगनाथ; मारे आंगणीये आंबो फळीयो, कोण भरे रे बावळ केरी बाथ रे. सलुणा देव स्वामिसीमंधर देव. १ कोई आवे रे बलिहारीनो साथ रे, सलुणादेव स्वामिसीमंधर देव, आडा सायर जळे भर्या रे, वचमा मेरु होय; कोई केईकने आंतरे, तिहां पहोंची शके नहि कोय. सलुणा देव स्वामिसीमंधर देव. २ में जाण्यु हुं आवु तुम पास, विषम विषम पंथ दूरः आडा डुंगरने दरिया घणा, वचमां नदीओ वहे भरपूर रे. सलुणा देव स्वामिसीमंधर देव. ३ मुज हैडु संशय भयु, कोण आगळ कई वातः एकवार रे जिनजो जो मिले, जोइ जोइ जोउ रे वंदन केरी वाट रे सलुणा देव स्वामिसीमंधर देव ४ कोइ कहे रे स्वामीजी आवीया, आपु लाख पसाय; जीभ रे घडावु सोना तणी, तेहना धडे पखालु पाय रे. सलुणा देव स्वामिसीमंधर देव. ५ स्वामीजी स्वप्नभां पेखीया, हैडे हरख न माय; वाचक गुणसुंदर एम भणे में तो भेटया सीमंधर राय रे. सलुणा देव स्वामिसीमंधर देव. ६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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