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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९ दूर थकां पण ताहरोजी; ध्यान धरुनिशदिश; जिम सुख पामु शाश्वताजी, तिम करजो जगदीश. कला० ५ देव सरागी छे घणाजी, ते दीठा न सुहाय; श्री जिन रंग हीये वस्योजी: अवर न आवे दाय. कला० ६ विचरे पूर्व विदेहमां, सुखकारी रे साहेबजी; सीमंधर भगवंत रे, जगत उपकारी रे साहेबजी; १ उत्पाद ध्रुव व्यव्यना, सुख० समय समय भासंत, जगत० सुरकृत आसने बेसीने, सुख० प्रभु देशना वरसंत रे, जगत० २ षडू द्रव्यगुण पर्यायथी, सुख - अड पख चउ भंग सार रे, जगत प्रमाण नय निक्षेपमुं, सुख०. चउ अनुयोग विचार रे जगत० ३ दशलाख केवलि मुनिवरा, सु० चोराशि गणधार रे, जगत० एक शत कोटि श्रमण भला, सु० करे जिन संग विहार रे, जगत० ४ होंस हृदयमां नित्य रहे, सु० ___तुम भेटण काज रे, जगत० पण भरतमें दूरे वस्यो, सु० । किम होय भेटण महाराज रे, जगत० ५ अहींथी वंदना प्रतिदिने, सु० जाणजो शंत अठ वार रे, जगत रतन कहे ए विनति, सु० मानजो विश्व आधार रे, जग० ६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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