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(२७)
( प्रथम जिनेश्वर प्रगमीए )
गुणनिधि साहिब सेवीए, सर्व सुपर्व अगर्व
नमे
'सीमंधर' जिनराज; जस पायक जे, शिवag वरणने काज. विजये विजय करंत; 'श्रेयांस' नृपांगना 'सत्यकी' उर धरंत.
स्नात.
'कुंथु' 'अर' जिन अंतरे, सीमंधर जिन जात; विद्या जणे विवेक पूरव दिशि तम रिपु, सुरगिरि उपर रमणीय रूप मणिकंत वृषांक कनक छवि, कांति वीर्य अनंत.
'सुव्रत' 'नमि' अंतर विचे, दीक्षा लीये तजी भोग; आतम शुद्धे घाति समिध वन ज्वालीयां, शुक्ल हुताशन योग अडहिय सहस सुलक्षणो, शोभित साहिब अंग; विश्वने जाणी झीलतो 'ज्ञान' जलाब्धि तरंग.
करगत आमल
जयवंती ' पुक्खलावती' पुरी 'पुंडरीगिणी' नाथ
तनु शत पंच धनुषतणु, दक्षिण पय तळे जोध
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श्री 'सीमंधर' साहिबा रे, विनतडी अवधार; भवसागरमा बूडता रे, बांह ग्रही मुज तार रे. कर जोडी कहुँ आज मानो मुज अरदास रे, शिरनामी कहु आज.
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