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पूर्वसुविदेह पुष्कल विजय मंडनं,
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वर्तमानं जिनाधीश तीर्थंकर,
वृषभ लंछन- धर
परमकरुणा परं
असुरसुरखचरनरवृन्द कृत वंदन,
धर्म - धारिम- धरा
मोह मिथ्यात्व मति तिमिरभर खंडनम् ।
भव्य ! भक्त्या भजे स्वामिसीमंधरम् ॥१॥
रूप सुररमणी सम-सस्यकी नन्दनम् ।
ज्ञानगुणसुन्दर,
भव्य ! भक्त्या भजे स्वामिसीमंधरम् ॥२॥
जगति हित कारक, भीम-भवजलनिधि - पार
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धरणधर - मन्दरं, भव्य ! भक्त्या भजे स्वामिसीमंधरम् ॥३॥
स्वर्ण समवर्ण वर मूर्ति शोभावर,
ऋद्धिवर बुद्धि र सिद्धिवरदायकं,
त्रिदशपति भवनपति मनुजपति नायकम् । भविकजननयनकैरववने शशिक
भव्य ! भक्त्या भजे स्वामिसीमंधरम् ||४॥
समय सुन्दर सदानन्द मंगलकर,
उत्तारकम् ।
सुगुरु जिनचंद्रजितसिंह गुणसागरम् ।
مع
भव्य ! भक्त्या भजे स्वामिसीमंधरम् ॥५॥
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