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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ दक्षिण भारतमां अमे रह्यां, 'पुष्कलावती' जिनराज; अंतर तो दीसे घणो रे, केम सरशे मुज काज. शिर०२ जलमां वसे रे कुमुदिनी रे, चन्द्र वसे रे आकाशः जिम हेनी इच्छा पूरता रे, तिम प्रभु पूरो मुज आश. शिर०३ जे तुम आण शिर धरे रे, सुखीया कहीये रे तेह; वळी वळी शुकहु व्हालमा रे, मुज शुधरजो नेह शिर०४ तुं माता तुंही ज पिता रे, भ्राता तुं जगबुद्ध; महेर करो मुज उपरे रे, करी करुणा रस शुद्ध -शिर०५ श्री श्री विजयजिणंदनो रे, शिष्य विजय गुण गाय; आज पछी प्रभु तुम बिना, अवर शु नमवा निम. शिर०६ (२९) बे कर जोडी विनवु रे लाल, मारी विनतडी अवधार रे; तुमे महाविदेहमां वस्या रे लाल, अभने छे तुम आधार रे, प्रभाते उठी करुं वन्दना रे लाल. १ भरतक्षेत्रमा हु अवतर्यो रे लाल, किम करो आq हजूर रे तुम दर्शन नवि पामीयो रे लाल, रह्यो मजूरनो मजूर रे.प्रभाते०२ तुम पासे देव घणा वसे रे लाल, एक मोकलजो महाराज रे मनना सन्देह प्रभु पूछीने रे लाल, करुं सफल दिन आज.प्रभाते०३ केवलज्ञानिना विरहथी रे लाल, मनुष्य जन्म एळे जाय रे, शुभ भाव आवे नहि रे लाल, शी गति माहरो थाय रे ?प्रभाते०४ कर्मने मोहे खूब कस्यो रे लाल, हजु न थयो खुलास रे, जिम तिम करी प्रभु तारजो रे लाल, हुं तो धरूं तमारी आश रे.प्रभाते०५ "सीमन्धरस्वामि"ना नामथी रे लाल, थाय सफल अवतार रे, "कल्याणमुनि' एम विनवे रे लाल, प्रभु नामे जयजयकार रे.प्रभाते०६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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