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बिहरमान सीमंधर स्वामि, प्रह उठी प्रणमुं शिर नामी;
सत्यकी माता उर सर हंस, लंछन वृषभ पिता श्रेयांस. १ पूरव महाविदेह मझारि, पुखलावती विजये अवतारी; कंचन वरणी कोमळ काया; चउरासी लख पूरव आया. २ पंचसय धनुष शरीर प्रमाणा; अमृत वाणी करत वखाणा: सकळ लोक संदेह हरंता, समयसुन्दर वांदे विहरंता ३
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(राग : कडखा प्रभातियां) स्वामि ! सीमंधरा तुम्ह मिलवा भणी,
हियडलु रातने दिवस होसे; ध्यान धरता सुपनमां आवी मिले,
झबकी जागे तब कांइ न दीसे; १ जो ते रे देव दीधी हुंत पांखडी,
तो हुँ ऊडी प्रभु जात पासे; स्वागि सेवा भणि अति धणो अळजो,
देवता का दिओ दर पासे २ ध्यान स्मरण प्रभु ताहरू नित धरु,
तु पण मुजने मत विसारे; समयसुन्दर कर जोडी इम विनवे;
स्वामि ! मुने भव समुद्र तारे. ३
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