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किरपा मोसुं किजियेजी, जिनराज महाराज,
किरपा मोसु किजियेजी; बेर बेर में करु विनति रे, सीमंधर जिनराज.
किरपा मोसु किजियेजी. १ जग उदधि तोय मिथ्या अति गहेरो रे,
तुम तारन तरन जिहाज अनंत काल चिहुं गतिमें रुलियो रे,
काहुं न ध्यायो धर्म साज. किरपा २ मैं चाकर खाना जाद रावरो रे.
तुम हो गरीब निवाज; कर दोय जोड कनीराम बोले रे,
तुम सम- सरे काज. किरपा० ३
(२)
(राग : मारुण) श्री सीमंधर सांभळो, विनति करूं कर जोड तुं समरथ त्रिभुवन धणी, मने भवबंधनथी छोड. सी० १ तुम मुज बिच अंतर घणो, किम करु तारी सेवा दैवे न दीधी पांखडी, पण दिलमें तु एक देव. सी० २ चंद्र चकोर तणी परे, तुं वस्यो मोरे चित्त समयसुन्दर कहे ते खरी, परमेश्वर शु प्रीत. सो० ३
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