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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य तु धन्य तुं स्वामिसीमंधरा, धन्य तुज शक्ति व्यक्ति सनूरी; कार्यकारण दिशा सहेज उपगारथी, शुद्ध एकत्व परिणमन पूरी. धन्य० १ नयरी पुंडरीगणी स्वर्ग पूरी सम बनी, जीहां जिनवर बिचरे सदाये; वृषभ लंछन मोषे बोधी आरोपता, आस्मक्षेत्रे प्रगटे ज दाये। धन्य०२ स्वामिगुण ओळखी साधी साधक दशा, दर्शन शुद्धता तेह पामे; ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, कर्म जीपी वसे मुक्ति धामे. धन्य० ४ अद्यपि भाव त्रिकाळ जाणता, तो पण निज वितक कहुं ओ; भूल्यो अभिमानमें झोल्यो पर भावमे, विषय कषाय आश्रवबहु धन्य०४ संवर वच्छनु सुगी सोमंधरु, जैन दर्शन एहि आश तो); आशा निज पद तगी स्वाभी अवलंबने, अनुपम सुख नित्य __ शाश्वतोओ. धन्य० ५ श्री सीमन्धर माहरा साहिब छो साचा, मुज मुजरो नित्य मानीये, अमची ए वाचा. श्री० १ ज्ञान दिवाकर उगीयो, झममगतो तेजे, ए प्रभु हैडे समरीये, नित्य अधिक हेजे. श्री० पुकखलवई विजयमां, विचरे जगस्वामी, धन्य तिहांनां भविजनां, तुम सेवा पामी. श्री० ३ हुंश हैयामां अति घणी, प्रभु मरवा केरी, आडा डुंगर अति घणा, किम मलीये हेरी. श्री० ४ तिण कारण मुज वन्दना, ईहांथी मानजो, “विनयविजय" वाचक तणो, विनति सदहजो. श्री० ५ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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