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तत्वबिन्दुः
१८३ अंग दुष्टत्वे तदात्मकांगिनोऽपि दुष्टत्वापत्तेः सम्मतिद्वितीय
कांड पत्र ५०००
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सम्मतितर्क द्वितीयकाण्ड. पत्र ५००.
जद जद बहुस्सु, समन्य मिस गण संपरिवुडोय अविनिच्छिय समए, तह तह सिद्धतपडिणीनं ॥ १ ॥
१८४ आय त्रण नरकमांत्रण सम्यक्त्व पमायछे-तेमां क्षायिक पारभविकछे - उपशम अने क्षयोपशम तद्भविकले.
मनुष्य गतिमां त्रण समकित हावळे, वैमानिकमां त्रण प्रकार समकित छे. बाकीना देवेने बेछे,
असंख्यात वर्षायुकतिर्यच पंचेन्द्रियने त्रण समकित मनुष्यवत्छे, बाकीना संख्याता वर्ष आयुष्यवाळाने वे समकित छे.
तत्त्वार्थ सूत्र वृत्ति
श्लोकसाकारः प्रत्ययः सर्वो, विमुक्तः संशयादिना साकारार्थपरिच्छेदात् प्रमाणं तन्मनीषिणां ॥ १ ॥
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१८५ मति, अवधि, अने वेवल साकार अने अनाकार वे भेदे छे अने श्रुत तथा मनः पर्यव साकारज छे,
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