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तस्यबिन्दु;
कनारा संग्रहादि त्रण नय छे, अने व्यंजनपर्यायना शब्द, : समभिरूड, एवंभूत ए ऋण भेद छे.
१५१ सप्त भंगीनो प्रथमभंग संग्रहनयमां छे. अने विशेषग्रहण करनार व्यवहारनयमां नास्तिरूप द्वितीय भंगनो अन्तर्भाव छे. खजुसूत्रमां त्रीजा अवक्तव्य भंगनो अन्तर्भाव छे. सम्मतितर्काभिप्रायथी अवक्तव्य त्रीजो भंग छे. रूजुमूत्रनो एक समय विषय छे. एक समयमां कोइ शब्द कहेवाता नथी. कारण के एक शब्द उच्चारण करतां असंख्याता समय थाय छे. तेथी रुजुसूत्रनयनी अपेक्षाए तृतीयभंग अवक्तव्य छे. चोथी भंगीस्यात् अस्ति नास्तिनो संग्रहनय तथा व्यवहारनयमां समावेश थाय छे. चोथी भंगीमां अस्ति संग्रहनो विषय छे. अने नास्ति, व्यवहारनो विषय छे. स्यात् अस्ति च अवक्तव्यरूप पंचमभंगीनो संग्रहनय तथा रूजु सूत्रनयमां अन्तर्भाव छे. कारण के अस्ति संग्रहनयनो विषय छे। अने अवक्तव्य रुजु सूत्रनो विषय छे. छठ्ठी स्यात् नास्तिच अवक्तव्य भंगीनो व्यबहार तथा रुजुसूत्र नयमां अन्तर्भाव छे. कारण के नास्त्यंश, : व्यवहारनो विषय छे। अने अवक्तव्य, रुजु सूत्र नयनो विषय छे. स्यात् अस्तिनास्तिच युगपत् अवक्तव्यरूप सप्तम भंगनो संग्रह, व्यवहार, रुजु सूत्रमां अन्तर्भाव छे. आ प्रकारे सप्तभंगी अर्थनय जे संग्रह, व्यवहार, रुजु सूत्रधी भिन्न नथी. अर्थात् सप्तभंगी अर्थनय स्वरूप छे. इति सम्मति तर्क द्वितीय कांड इसी ४६ मा. पाने.
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