________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ताबहिः
करनार, अधर्मशील आचरणवाला, अने जे सदाकाल पाप करता रहेछे. तेओ मता सारा. कारण के एवा पापी जीवो मूताथका प्राणीयोने दुःख पीडा आपी शकता नथी.
१४७ जे जीवो सदाकाल धर्म करे छे. सर्व जीवोनी दया प्रा .
सर्व जीवोने धर्मनो उपदेश आपे छे. ते जीवो जागता सारा जाणवा.
१४८ सप्तभंगीमांनो प्रथमभंग त्रण प्रकारे छे. द्वितीयभंग प्रा प्रकारे
छे. तृतीयभंग तथा चतुर्थभंग दश प्रकारे छे. पंचमना एकशो त्रीश. छठाना एकशो त्रीश अने सातमाना पण एकशो श्रीम जाणवा. सर्व मळी ४१६ भेद थया. सम्मतितर्कमां.
१४९ बे प्रकारना नय छे १ अर्थनय. २ शब्दनय. प्रथम अर्थनयना
त्रण भेद. संग्रह, व्यवहार, रुजुसूत्र. शब्दनयना प्रण भेद. शब्द, समभिरूढ, एवंभूत. एवं सम्मतितर्कवृत्तौ द्वितीयकांड.
१५० पर्यायना बे भेद छे. अर्थपर्याय अने व्यंजनपयोग भयंपायने
For Private And Personal Use Only