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( ४० )
तरवबिन्दुः
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चतुर्दशपूर्वी संसारमां वसतां चार वार आहारक शरीर करे अने एक भवमां बे वार करे.
१३४ केवलज्ञानावरणीय, केवलदर्शनावरणीय, पंचनिद्रा, बारकषाय, अने मिथ्यात्व ए वीश प्रकृति सर्वघाती जाणवी.
१३५ ज्ञानावरणीय चार चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन अने अवधिदर्शन ए ऋण दर्शन तथा संज्वलनना चार कषाय अने नव नोकपाय तथा पंच अंतराय . समकित मोहनीय अने मिश्रमोहनीय ए सत्तावीस प्रकृति देशघातीनीछे.
१३६ भावना पञ्च प्रकारछे क्षायिकभाव उपशमभाव क्षयोपशमभाव उदयिकभाव पारिणामिकभाव.
मां प्रथम उपशमभावमां सम्यक्त्व अने चारित्रछे, क्षायिक भावमां ज्ञान दर्शन चारित्र तथा दान, लाभ, भोग उपभोग बीर्य अने सम्यक्त्व ए नव छे. तथा क्षयोपशमभावमां चार ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन पंचदानलब्धि तथा सम्यक्त्व, चारित्र अने संयमासंयम ए अढार भेद जाणवा औदायिकभावमां चारगति, चारकषाय, ऋणलिंग, छ लेश्या अज्ञान, मिध्यात्व, असिद्धता, अने असंयम एम एकवीश भेद
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