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तश्वबिन्दुः
(३९) भावार्थ-काले सुपात्र दान देवू. सम्यक्त्व विशुद्धि, अने बोधिबीजनी प्राप्ति, अने अन्त्यसमाधिमरण, अभव्यजीवो पामी शकता नथी.
१३२ व्यवहारराशिया जे वादरनिगोदमां अनंताछे. ते फरी कर्मनी
बाहुल्यताए सूक्ष्मनिगोदगोलकमां जाय त्यां रही बळी पाछा कंदादिकसाधारण वनस्पतिमां आवे एम संबंधे सूक्ष्मनिगोदना बादरनिगोदमांआवे. वळी बादरना सूक्ष्ममां जाय, एमबे स्थानके आवागमन करतांजीव त्यां उत्कृष्ट रहेतो अढीपुद्गलपरावर्त पर्यंत रहे. पश्चात् पृथिव्यादिक स्थानक स्पर्शतो उंचो आवी मनुष्य थाय, व्यवहारराशियो भव्यजीव सामग्री पामी सिद्धिवरे तथा वली एम कपुंछे के कंदमूलसाधारणमांथी जीव सूक्ष्मगोलकर्मा जायतो अने उत्कृष्ट काल रहे तो असंख्यात काल पर्यंत सूक्ष्मनिगोदगोलकमांहि रहे त्यांथी नीकळी बादरनिगोद कंदमूलमां उत्कृष्ट सित्तर कोडाकोडी सांगरोपमपर्यंत ज्यारे ज्यारे सूक्ष्मनिगोदमांथी आवे त्यारे रहे एम संबंध छे. उत्कृष्ट अढीपुद्गल परावर्तपर्यंत व्यवहारराशियो जीव निगोदमा रहे.
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गाथा.
चत्तारियवाराजे, चउदस पुवी करेइ आहार संसारमि वसंतो, एगभवे दुनिवारा
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