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२८ पुच्छायी अज्ञाननी पुष्टि थायछे, अने मूर्च्छाथी मिध्यात्वनी पुष्टि थाय छे.
२९ आठ कर्म मध्ये मोहनीय कर्मनी अठ्ठावीश प्रकृतिछे, तेमां त्रण प्रकृति सम्यक्त्व मोहनीयनी जाणवी, चारित्र मोहनीयनी पश्री प्रकृतिछे ते मध्ये तेर प्रकृति रागना घरनी अने बार प्रकृति द्वेषना घरनी जाणत्री.
३० योगत्रि के उपाय कर्म ते तप संयमादि शुभ क्रिया व्यापारे प्रवर्ततां टळेछे, तथा शुद्ध उपयोगे आत्मस्वरूपमां परिणमतां सत्ताए कर्मछे ते मटावे. तथा मिध्यात्वथी बांध्यां कर्म समकितथी टळे, अविरतिनां बांध्यां कर्म विरतिथी टळे. कषायनां बांध्यां कर्म उपशमादि समता गुणथी टळे, प्रमादथी बांध्यां कर्म अम्माददशाए टळे. इन्द्रियविषयनां बांध्यां कर्म ते तपश्चर्याथी ढळे.
३१ सर्व संयोगोनो वियोग थशे. चेतन चेती ले. परमां इष्टबुद्धि दुःखतुं मूळछे
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