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तत्वविन्दः
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देशना श्रवण करवी, सुदेवनी सेवना करवी, सुधर्मनी आ. राधना करवी.
२४-क्रोधमान बे द्वेषनां अंगछे, माया अने लोभ बे रागांगळे. नो.
कषायमां स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अने नपुंसकवेद, ए त्रण वेद तथा हास्य तथा रति बे एमपंच रागनां अंगछे, तेमज अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, ए चार द्वेषनां अंग जाणवां. रागद्वेष तेज मोह जाणवो.
२५-आत्मस्वभावे परिणमतां सम्यक्त्व गुण प्रगटे ।
२६-पांच इंन्द्रियना विषयरूप ते द्रव्यमन जाणवू. व्यक्ताव्यक्त वि
कल्परूप भावमन जाणवू, अपेक्षाए आ व्याख्याछे.
२७ शुद्धज्ञान उपयोगे जीव भावनिर्जरा करे, अने वैराग्यभाव उ
दासिनताए द्रव्यनिर्जरा करे.
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