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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७६) तत्त्वधिन्दु. ५९० कालो भइयव्वो खेत्तबुट्टीएत्ति अवधिज्ञानतुं क्षेत्र वृद्धि पामतां कालनी भजना. ( वधे वा न वधे ) अन्यथा क्षेत्रनी वृद्धि थतां कालना नियमवडे समयादि वृद्धि थाय त्यारे तो अंगुल मात्र क्षेत्र वृद्धि पामे छते कालनी असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणियो वृद्धि पामे. अंगुल सेढीमेत्ते नसप्पिणी असंखेज्जत्ति ॥ ते माटे आवलिकावडे वे आंगुलथी नव आंगुल, अवधि कांछे ते आदि सर्व विरुद्ध ठरे. माटे क्षेत्र वृद्धि थतां कालवृद्धिनी भजना. द्रव्य अने पर्यायनी वृद्धि थए छते क्षेत्र अने कालनी भजना जाणवी. द्रव्यनी वृद्धि थतां पर्यायनी अवश्य वृद्धि थायछे. प्रतिद्रव्यमा पर्याय अनंतछे तेमांथी जघन्यथी एकद्रव्यना चार पर्यायलाभ, अवधिज्ञानिने होय. ___ गाथा विशेषावश्यकभाष्य. काले पवढमाणे, सब्वे दव्वा पवद्वंति; खेत्ते कालो भइओ, वढंतिओ दव्वपज्जाया ॥१॥ भयणाए खेत्तकाला, परिवढतेसु दव्वभावसु दव्वे वढइ भावो, भावे दव्वं तु भयणिज्जं ॥२॥ सुहुमोय होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खेत्तं; अंगुलसेढीमित्ते, नसप्पिणीउ असंखेज्जा ॥३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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