________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तत्वबिन्दु.
(९७) शम समकित पर्याप्तावस्थामांहि पमाय. विशेष के-पांच अनुत्तर विमानमा जाय तो तेने अपर्याप्तावस्थामां उपशम समकित होय, अने पर्याप्तावस्थामां तो पांच अनुत्तर विमानमां क्षयोपशम समकित वा क्षायिक समकित होय. नव लोकांतिक देवताने उपशम समकित न होय.
२८८ जीवना पांचसो त्रेसठमांथी १६८ एकसो अडसठ भेदमां
क्षायिक समकित होय. १२ बार देवलोक, नव लोकांतिक, नव नवग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमान, ए पांत्रीसना पर्याप्त अने अपर्याप्त भेद गणतां सित्तेर भेद थाय. त्रीजी नरक सुधीना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता गणतां छ भेद. पन्नर कर्मभूमि अने त्रीस अकर्मभूमिना पिस्तालीश भेद ते पर्याप्ता अने अ. पर्याप्ता गणतां नेवं भेद थाय. अने तिर्यंच गर्भज पंचेन्द्रियना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता ए बे भेद गणतां सर्व मळी एकसो अडसठ भेद थाय.
२८९ पांचसो त्रेसठ जीवना भेदछे तेमाथी चारसो त्रेवीस भेद क्ष
· योपशम समकितमां जाणवा.
For Private And Personal Use Only