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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२० www.kobatirth.org द्रव्यप्रकाश. || सवैया तेवीसा || यह शरीर हे पीरको पीहरई पर आतमकी दरहेरी, बेरी करेरी परी यह ज्ञायक काई अनेरी रही नही सेरी; ज्ञान सरूपमयी भजि चेतन ए तनये मन प्रीति उधेरी, ज्ञानको मोगर लेकर आतम तोरि तुं मोह जंजीरकी जेरी ॥ ६६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ शरीर कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा || मेतो तनधारी नांहि एतो तन मेरो नांही मेतो ज्ञान गुणधारी करमस्यो न्यारो हे, तो चेतना सरूप एतो जड भावरूप मेरो याको कोन नेह एह न विचारयो है: मेंतो नित्य ए अनित्य प्रगट असुचिखानि हानियान एसो देह मोको कैसे प्यारो हे, मोहके विटंब घेरयो भवकाल थित प्रेरयो ऐसो भेदज्ञान में तो चित्तमें न धारयो है ||६७ || ॥ परहेआतमाउपादेय कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा || सुरू दृष्टि समकिती प्रकृते विरतचित्त करमको करतन कहो कह्यो जात हे, मिथ्यादृष्टि क्रूरमति पररंग राच्यो संतो पर कृत फलहीको भोगता कहात हे; निज परको विवेक करे भेदज्ञान छेक टेक डारिके अनेक यह जैन वात हे परभुक्त गुणयुक्ति भुक्ति विन्तु मुक्तियूत एसो निज चेतनको देवचंद व्यात हे ।। ६८ ।। ४० For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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