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द्रव्यप्रकाश.
|| सवैया तेवीसा ||
यह शरीर हे पीरको पीहरई पर आतमकी दरहेरी, बेरी करेरी परी यह ज्ञायक काई अनेरी रही नही सेरी; ज्ञान सरूपमयी भजि चेतन ए तनये मन प्रीति उधेरी, ज्ञानको मोगर लेकर आतम तोरि तुं मोह जंजीरकी जेरी ॥ ६६ ॥
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॥ शरीर कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ||
मेतो तनधारी नांहि एतो तन मेरो नांही मेतो ज्ञान गुणधारी करमस्यो न्यारो हे, तो चेतना सरूप एतो जड भावरूप मेरो याको कोन नेह एह न विचारयो है: मेंतो नित्य ए अनित्य प्रगट असुचिखानि हानियान एसो देह मोको कैसे प्यारो हे, मोहके विटंब घेरयो भवकाल थित प्रेरयो ऐसो भेदज्ञान में तो चित्तमें न धारयो है ||६७ ||
॥ परहेआतमाउपादेय कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ||
सुरू दृष्टि समकिती प्रकृते विरतचित्त करमको करतन कहो कह्यो जात हे, मिथ्यादृष्टि क्रूरमति पररंग राच्यो संतो पर कृत फलहीको भोगता कहात हे; निज परको विवेक करे भेदज्ञान छेक टेक डारिके अनेक यह जैन वात हे परभुक्त गुणयुक्ति भुक्ति विन्तु मुक्तियूत एसो निज चेतनको देवचंद व्यात हे ।। ६८ ।।
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