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द्रव्यप्रकाश.
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॥ मनसंकल्प कथन ।।
॥ दोहा ।। विकल्प जाल कल्लोल करि, चपल मनोजलफंदा चितद्रह चेतनता दूरि, ज्यु वादरमें चंद. ॥ ६९ ॥
आतमामोक्षहेतु॥
॥ सवैया तेवीमा ॥ आतम आतमभाव धरयो ध्रुव चेतनता गुनज्ञानको साई, ध्यायकव्येय अभेद चिदाकर ध्यावहुं त्याग कैसो जपराइ; चंचल भाव तजो भजि एकता चित तरंग अनंग हराई, सादिअनंत महंत अमीत सो पावहु मोक्ष प्रधान सवाई. ७०॥
॥दोहा॥ परगुण संमुख ज्ञानसो, चेतन परवश होय; निज गुण संमुखता लहे, लहे आतम गुण सोय.॥७१॥
॥ज्ञानथीरीकरण ॥
॥ दोहा ॥ चित्त प्रीति ज्यु देहपै, त्युं चेतनपै होय; तीहु काल भी कर्मको, बंधन लहे न सोय. ॥ ७२ ॥
॥ आत्मा अबंध कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ जडता सुभाव लीये मोह मद पान कीये, एसो परद्रव्य सो तो मेरो धुन नाही हे, मेतो याको नाथ नाहि मेतो नाथ
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