________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्रव्यप्रकाश.
ताप तोरी कर्म दोरको मरोरी भोरी परभाव राज ज्ञानराज धारयो हे, ऐसो निर्विकल्प ध्यान ताको महिमान मान जाने देवचंद औरको कहनहारो है ॥ ४६ ॥ ॥ अथ निर्विकल्पध्यानहेतु कथन ॥
॥सवैया तेवीसा ॥ ज्ञानको गेह अछेह आनंदको फंदके कंदको छेदनहारो, वीरयशक्ति अनंतको नायक लायक क्षायक भाव उजारो घायक मोहको त्रायक सौहको सोजलीये निजबोधि पसारो, ध्यान एकत्वको हेतु हे आतम यातम तापको तालनहारो ॥४७॥
॥ अथ तनहेय कथन ॥
॥दोहा॥ जोति अनादि अनंतघर, परकरता निज मानी; भयो गेह अज्ञानको, स्वस्वरूप गुनभानि. ॥ ४८ ॥ ज्ञानदृष्टि छुटे भइ, तन परिचे तन प्रांतिः परक्रिय करता भ्रम भयो, मतवाला दृष्टांति. ॥४९॥ जैसे इंद्री भोगपरि, हे तेरो अनुराग; तैसो आतम ज्ञानसु, धरि चित यह शिवमाग. ॥५०॥ जो रूपी सोहे नही, में अरूप चिद्रुपः याते तजी परभाव सब, आतमरूप भजी अनुप. ॥५१॥ जा तनकी ममता गये, आतमतच दृढ होय; ताको जो अपनो गिने, मूढ वृद्ध हे सोय. ॥५२॥ तन ए पुद्गल पिंड जड, तुं चेतन अमलानी; एसो अमिल मिलाप सब, जुर्यो कीसि विधि आनि.॥५३॥
For Private And Personal Use Only