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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश. amanar.nanAmAna ne ब्रह्म नित्य ज्ञान धाम हे, परजायनै अध्रुव सुक्षम सभाव धर उदिम सभाव लीये करतार राम हे; कालचाल हे प्रवाह पर नाम चक्रगति युं अनेक अंगपान जीव पर नाम हे, एक अंग तजि सवंग गहे सो सुबुद्धी एक अंगरंग रागि सो कुबुद्धि खाम हे ॥ ४३ ॥ ॥ अथ स्याद्वादसरूप कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ आपने चतुष्कगुन हेसो नाही परगुन या ते दोनुं वात सम कथन रहतुहे, है भी नाही कह्यो जाय नाहि नाहि कह्यो जाय, कयो जाय हैहत न कह्यो सर्व नयमै कहतु हे; नित्य हे अनित्य हेकी सत्य हे असत्य हेकि अवक्तव्य वक तव्य सब अभिमतु है, एसो प्रभु चिदानंद ज्ञानादि विगुन योग देवचंद पद पाय आनंद लहतुहै ॥ ४४ ॥ ॥सविकल्पनिर्विकल्पज्ञान कथन । ॥दोहा॥ नव नव गुनमय जीव कह्यो, यह सविकल्प ज्ञान; नास कर्म कर एकमय, निर्विकल्पको ध्यान. ॥ ४५ ॥ ॥ निर्विकल्पमहिमाध्यान कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ अनादि अज्ञान लीये रागदोष मद पीये मोह महातम सो महातम वधारयो हे, जीव लोक जीत लीयो ज्ञानगुन मुद दीयो कीयो निज राज परभावको पसारयो हे; ताको पर For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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