________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्रव्यप्रकाश.
कालपाय फल खिरे जनममरण वात कालहीमे लीन है, याते सुखदुख रासी शिववास भववास रवि शशि उदे अस्त कालके आधीन है ॥ ४० ॥
॥ जैनउत्तर कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ जैन कहे सुनो भईया जेती कही तुम बात तेती सब साची ये एकांत नाहि गहनौ, स्वभाव नियत पूर्व कृत फुनी उद्यम सो पंचमो तो समवाय कालवसि कहनौ; पांच समवाय मिले फले तव शिवकाज समवाय मिल्यो वितुं काज नाहि सरनो, मतपक्षपात हरी स्यादवाद भाव घरी नय भंग भेद युत एसो ज्ञान धरनो ॥ ४१ ॥ ॥सर्वमत एकत्वीकरन जैनमत स्थापन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ मीमांसक कर्ममानि विवहार पक्ष गहे वेदपाठी ब्रह्म मानी दर्व नय गहतुहे, बोध छिन्न भंग कहे परजाय नय जाय मति कहे करतार उद्यम महतुहे; शिवमति कालवादी सर्व कालाधीन मानी पांचो समवाय तजि टेकमे रहतुहे,. एतै सब अंसवादी अंधगल रीति गहे स्यादवादि सर्व ए अनेकता कहतुहे ॥ ४२ ॥ ॥ अथ षट्दर्शन जैनके अंशरूप कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा॥ विवहार नय गहे प्रकृतिहे मुख्य रूप निहचे स्वभाव
For Private And Personal Use Only