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द्रव्यप्रकाश.
उतपात व्यय ध्रुव धारा तीनौ सदा एक समे एक वस्तु वीचि कही सत्य हे. ॥ ३७॥
॥ न्यायमति ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ ऐसे वानी सुनी मनमांही न सुहानी तब न्यायमति बोल्यो निज पक्षको पकरीके, नारी विनुं होय कैसे संतानके उपज न भोजनको करे कौउ पाक विनुं करेके उद्यमके कीये वितुं कैसे कार्यसिद्धी होत उद्यम प्रधान याते कहो और हरिके, याते करतार जीव कह्यो विश्वनाथ ऐसे वीरजको फोरि निज उद्यमको धरिके ॥ ३८ ॥
॥ताको जैन उत्तर कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ जैन कहे एतो बात कही हे एकंतनय स्यादवाद बादी ऐसी वात नाही कहे हे, चेतनको वीरज जागे भागे परभाव सब याते यह उद्यम व्यौहारमाही गहेहे; कर्म उदै उद्यम सो गुन त्रय वहेहे, कर्मको स्वामित्वपनो भेदज्ञान भाव विनुं अहं बुद्धि भाव वसि चेतनजी लहेहे ।। ३९ ।।
॥ शिवमनि कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ।। शिवमति कालवादि कालपक्ष गहे रहे, कहे सब जगवात कालमत पीन हे, कालवसि बालक सो युवा होय वृद्ध होय कालपाय वस्तु जो नवीन सोइ छीनहे: कालबसि रितु फिरे
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